बांस की बांसुरिया लाला,
कहाँ ते लायो रे,
कन्हैया बांसुरी बजा दे,
अब तो फागुन आयो रे।।
मोर मुकुट माथे तिलक विराजे,
कानो में है बाला,
मधुर मुरलीया ऐसी बाजे,
नाच उठी ब्रज बाला,
फागुन आयो रे फागुन रे,
कन्हैया बांसुरी बजा दे,
अब तो फागुन आयो रे।।
सास ननद से चोरी चोरी,
मैं रस्ता में आयी,
मधुर मुरलीया ऐसी बाजी,
सुध बुध सब बिसराई,
फागुन आयो रे फागुन रे,
कन्हैया बांसुरी बजा दे,
अब तो फागुन आयो रे।।
सारा जग मैं ढुढ चुकी,
मोहे कोई भाया रे,
ऐसी सुन्दर गुजरीया लाला,
कहाँ ते लायो रे,
फागुन आयो रे फागुन रे,
कन्हैया बांसुरी बजा दे,
अब तो फागुन आयो रे।।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि,
ऐसी करुणा किजे,
होली के इन रंगन में मोहे,
चरणन की रज दिजे,
फागुन आयो रे फागुन रे,
कन्हैया बांसुरी बजा दे,
अब तो फागुन आयो रे।।
बांस की बांसुरिया लाला,
कहाँ ते लायो रे,
कन्हैया बांसुरी बजा दे,
अब तो फागुन आयो रे।।
स्वर – श्री रविनंदन शास्त्री जी।
प्रेषक – महेश सोनी भवानी।
9785970452