बीरा सपना में मत करज्यो रे,
माया रो अभिमान।।
दोहा – पूंजी जोडे सुमडा,
ना खर्चे ना खाई,
क्या पता इस माल का,
जो चोर लुट ले जाई,
चोर लुट ले जाई,
दान मे लगे नही कणका,
मुख मे घास रह जाई,
मुड को पता नही क्षण का।
मंगल गिरी यू कहत है,
माया बुरी बलाय,
पूंजी जौडे सुमडा,
ना खर्चे ना खाय।
अभिमानी से जात है,
राज तेज ओर वंस,
तीन घर ताला जुढीया,
रावण केरव ओर कंस,
नी जाणो तो देखलो,
जाकै पाछै नही वंश।
बीरा सपना में मत करज्यो रे,
माया रो अभिमान।।
राजा रावण माया पाई,
जाकै राजपाट सुखदाई,
रघुवर से करी लड़ाई रे,
लंका भई शमशान,
बीरा सपना मे मत करजो रे,
माया रो अभिमान।।
दुर्योधन मद में छाया,
पांडवो से बैर बसाया,
नीत समझायो न समझ्यो रै,
कहता क्या भगवान,
बीरा सपना मे मत करजो रे,
माया रो अभिमान।।
हिरणाकुश नाम अकेला,
वे कंश हरी संग कहेला,
बगड़ावत हो गया गेला रै,
जाकी बिगड़ गई है शान,
बीरा सपना मे मत करजो रे,
माया रो अभिमान।।
जो जो नर मद में छाया,
वे तो खाली हाथ पछताया,
संत बख्शी राम कथ गाया जी,
धरो हरी का ध्यान,
बीरा सपना मे मत करजो रे,
माया रो अभिमान।।
गायक – मनोहर परसोया किशनगढ।