भगत शिरो मणि गुरु मुरारी,
जिसकी गद्दी सबतै भारी,
सबकी दूर करै लाचारी,
समचाना दरबार में।।
आलू सिंह का चेला प्यारा,
सारे हिंदुस्तान में छा रया,
मंद मंद मुस्काया करता,
होक्के नै गड़काया करता,
पास बिठा समझाया करता,
समचाना दरबार में।।
बालाजी का यो भगत बड़ा सै,
दीन दुखी के साथ खड़या सै,
हरियाणे मै नाम जणाग्या,
दीन दुखी का काम बणागया,
घर घर सीताराम सुणाग्या,
समचाना दरबार में।।
इतने चेले बणाग्या गुरु जी,
बात ज्ञान की सुणाग्या गुरु जी,
पार हुया कितना का बेड़ा,
मेट दिया सारा उलझेड़ा,
रोज मारता आज भी गेडा,
समचाना दरबार में।।
आशीष कौशिक शरण मै आया,
संजीत नै भी ध्यान जमाया,
रोहित भगत कै राम धुन लागी,
तन मन के म्ह मस्ती छागी,
कैसी चीज अनूठी पागी,
समचाना दरबार में।।
भगत शिरो मणि गुरु मुरारी,
जिसकी गद्दी सबतै भारी,
सबकी दूर करै लाचारी,
समचाना दरबार में।।
गायक – आशीष कौशिक।
8708684936
लेखक – संजीत समोरा।
प्रेषक – सागर।
8168000311