भजन बिना रेग्यो रे नर,
पशु के समान।
दोहा – राम भेजो रे बंदवा,
जब लख घट में प्राण,
कबहुँ क दिन दयाल के,
भनक पडेगी कान।
भजन बिना रेग्यो रे नर,
पशु के समान,
बावला बेल के समान,
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान बावला।।
पाँव दिया रे बंदा,
तीरथ करले बंदा,
तीरथ करले रै,
हाथ दिया रै कर दान,
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान बावला।।
दांत दिया रे बंदा,
मुखड़ा कि शोभा,
बीरा मुखड़ा कि शोभा रै,
जीभ्या दिनी रे भज राम,
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान बावला।।
नेण दिया रै बंदा,
दर्शन करले बंदा,
दर्शन करले रै,
कान दिया रै सुण ज्ञान,
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान बावला।।
कहत कबीर सुण भाई साधो,
सुण भाई साधो रै,
राम भजन कर,
नर ऊतरो पार,
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान बावला।।
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान,
बावला बेल के समान,
भजन बीना रेग्यो रे नर,
पशु के समान बावला।।
गायक / प्रेषक – मनोहर परसोया।
कविता साउँण्ड किशनगढ़।