भजन कर नर स्वांसों की,
दोहा – उपकार बडो निज धर्म कहे,
तन से मन से धन से कर रे,
धन संग चले परमार्थ को,
नित खूब कमा वित जो भर रे।
कर सोच रे धनवान कहां,
तज भूप गए धरणी धर रे,
जन भारती पूरण आज यहां,
कल होय कहां अपनो घर रे।
भीम युधिष्ठिर भीष्म पितामह,
वीर कर्ण सिरताज कहां,
द्रोणाचार्य दुर्योधन अर्जुन,
आज निशानेबाज कहां।
हनुमंत बाली बाणासुर,
लंकापति महाराज कहां,
मेघनाथ कुंभा हिरणाकुश,
भारती पूरण आज कहां।
चंद्रगुप्त अशोक सिकंदर,
जो चक्रवर्ती सम्राट कहां,
महाराणा प्रताप शिवाजी,
शाह अकबर के ठाठ कहां।
बहु भूप विरासत छोड़ चले,
जिनके अब राजपाट कहां,
कुच करे तब देखत को नहीं,
भारती पूरण बाट कहां।
भजन कर नर स्वांसों की,
काया अचानक देगी धोखा रे।।
काल अचानक आय,
मिले नहीं पल भर मौका रे,
छोड़ चले मेहमान,
पढ़ा रहे खाली खोखा रे,
भजन कर नर स्वांसो की,
काया अचानक देगी धोखा रे।।
पंचतत्व का जाय पुतला,
वन में भौखा रे,
मिट गए नाम निशान करे,
दो दिन का सोका रे,
भजन कर नर स्वांसो की,
काया अचानक देगी धोखा रे।।
हे तु बनेगा कर्म शुभा शुभ,
अगले भौ का रे,
लख चौरासी माय लगेगा,
जीवन चोखा रे,
भजन कर नर स्वांसो की,
काया अचानक देगी धोखा रे।।
जीवत पार चलो भव सिंधु,
चढ़ निज नौका रे,
भारती पूरण यही तिरने का,
अवसर चोखा रे,
भजन कर नर स्वांसो की,
काया अचानक देगी धोखा रे।।
भजन कर नर स्वांसो की,
काया अचानक देगी धोखा रे।।
गायक – पुरण भारती जी महाराज।
Upload By – Aditya Jatav
8824030646