भर्तृहरि भूप भयो बैरागी,
बन बन डोले फिरे उदासी,
ऐसी राम धुन लागी।।
तन त्यागी जाको मन बैरागी,
सूरत साहेब से लागी,
मनडा न मार मुठ्ठी में राख्यो,
चांद सूरज दोय साखी।।
हस्ती चढ़नता पिलंग पोढता,
तुरी अठारा लख त्यागी,
सेजा रमती सुन्दर त्यागी,
पाछी प्रीत ना लागी।।
आशा तृष्णा करें कल्पना,
राग़ द्वेष सब त्यागी,
जोग लियो जग जातो देख्यो,
नगर उजैणी न त्यागी।।
जाने मिलगा गुरु गोरख जी,
अख अमर धुन जागी,
कह कबीर सुनो भाई साधो,
जोग ले लियो बढ़ भागी।।
भर्तृहरि भूप भयो बैरागी,
बन बन डोले फिरे उदासी,
ऐसी राम धुन लागी।।
स्वर – श्योजी राम सैनी।
8094953386