भवन में खेल खिलावेगी,
सच्चे मन तै सुमर लिए,
माँ काली आवैगी।।
मां काली सिर खेल खेल के,
कष्टों का विनाश करे,
भवनों के महा रुदन मचा दे,
जिस पर संकट वास करे,
उनके घर में खुशियां आजयां,
जो जितना विश्वास करे,
लाल जीभ और वस्त्र काला,
मां क्रोध में अवैगी,
हो भवन में खेल खिलावैगी।।
कच्चे पीले भोग बना ले,
चौमुखा दिवा जगा दिए,
कोरी हांडी खीर बना ले,
मां काली को भोग दिए,
जीव की भेंट ओटीए मत ना,
श्रीफल पर तू मना लिए,
पान और पेड़ा सजा थाल,
मां भोग लगावैगी,
हो भवन में खेल खिलावैगी।।
रूप देख कै डरना जाइए,
चंडी रूप धरे मईया,
एक हाथ में खप्पर राखै,
दूजे में शमसीर मईया,
काल रूप मुंडो की माला,
बदल देवै तकदीर मईया,
केस खिंडा हुंकार भरै,
किलकर लगावैगी,
हो भवन में खेल खिलावैगी।।
पूनम भगतनी कमी ना छोडै,
पास बिठा समझाणे में,
जोम भगत के कसर रही ना,
जान लगा महाराणे में,
बेदु सेठ भिवानी आला,
ना आवे कदे उल्हाणे में,
राजकुमार तेरे मन का ठिकाना,
कलम बतावैगी,
हो भवन में खेल खिलावैगी।।
भवन में खेल खिलावेगी,
सच्चे मन तै सुमर लिए,
माँ काली आवैगी।।
लेखक / गायक – राजकुमार किनाना जींद।
9728254989