भोली सी सुरत,
माथे पे चंदा,
देखो चमकता जाए,
सदा समाधि में है मगन,
कही भोला नजर ना आए,
जब भक्तो को पड़े जरुरत,
खुद को रोक ना पाए।।
तर्ज – भोली सी सुरत।
सागर मंथन के अवसर पर,
शिवजी विष पी जाए,
पीकर विष की गगरी भोला,
नीलकंठ कहलाये,
कोई भी मांगे बुंद तो ये,
सारा सागर दिखलाए,
शिव की लीला बडी अलग है,
कोई समझ ना पाए,
भोली सी सूरत,
माथे पे चंदा,
देखो चमकता जाए।।
शिव अकाम गुण के है धाम,
शिव का ही नाम संयम,
शिवलीला तो है अगाध,
तोडे करमो का बंधन,
शिव शक्ति से अलग नहीं है,
संसार का कण कण,
शिव का नाम लिए मन में,
चलता हूँ मै तो हरदम,
भोली सी सूरत,
माथे पे चंदा,
देखो चमकता जाए।।
भोली सी सुरत,
माथे पे चंदा,
देखो चमकता जाए,
सदा समाधि में है मगन,
कही भोला नजर ना आए,
जब भक्तो को पड़े जरुरत,
खुद को रोक ना पाए।।
गायक – मुकेश कुमार जी।