भूल उसे बैठा है जग में,
नाम रतन जो पाया है,
नाम सुमरने,
भव से तरने,
को तू जग में आया है,
भूल उसे बैठा है जग में।।
तर्ज – फूल तुम्हे भेजा हे खत में।
जग की खातिर तूने बँदे,
उल्टा सीधा काम किया,
लेकिन अपनी खातिर तू ने,
इक पल ना हरि नाम लिया,
पाप गठरिया बाँध के तूने,
अपने सिर पर लाद लिया,
पार उतर गए भव सागर से,
जिसने पावन नाम लिया,
भूल उसे बैठा है जग में।।
लख चौरासी भोग के तूने,
यह मानुष तन पाया है,
छोड़के मानुषता को तू ने,
पशुता को अपनाया है,
जाग सके तो जाग जा बँदे,
क्यो तू जहाँ मे आया है,
देवो को भी है जो दुर्लभ,
वो नरतन तू पाया है,
भूल उसे बैठा है जग में।।
भजले मन मेरे तू हरि को,
प्रभू सबके रखवाले है,
होते है कोई बिरले जो,
शरण प्रभू की पाते है,
भव तारन है जग तारन है,
श्री कृष्णा मुरली वाले,
इनके दर वो ही आते है,
जो होते किस्मत वाले,
भूल उसे बैठा है जग में।।
भूल उसे बैठा है जग में,
नाम रतन जो पाया है,
नाम सुमरने,
भव से तरने,
को तू जग में आया है,
भूल उसे बैठा है जग में।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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