चक्कर चाल रियो ढा़लिया में,
दोहा – ब्रह्मा जी ने चाक चलाई,
अपनी झौपड़ माय,
माया का ये जीव घड़े,
आंकड़ा लिखे सरस्वती माय।
चक्कर चाल रियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार,
ब्रह्मा जी दरबार विधाता,
ब्रह्मा जी दरबार।।
पेली सत की शिवलिंग बणाई,
पिंडी शालिग्राम,
पछे बणायो कुण्डल कलशियों,
गजानंद को नाम.
चक्कर चालरियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार।।
सबका करम ने लिखे भवानी,
शारदिया महा मात,
कि का अधुरा किका ना पुरा,
चलता रहे दिन रात,
चक्कर चालरियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार।।
इस चक्करी पे दुनिया चाले,
नहीं कोई इनसे न्यारा,
कभी पलट जा कभी उलट जा,
कुदरत खेल है न्यारा,
चक्कर चालरियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार।।
अमर किया ना किसी को विधाता,
एक दिन जाणो जरुर,
कोल ख़त्म विया मटको फुटे,
वेजा टुकड़ा चुर,
चक्कर चालरियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार।।
‘रतन’ ऐसो भजन बणायो,
सुणकर किशना ज्ञान,
हिरदा में या ज्योत् जगाई,
दुर किया भ्रम अज्ञान,
चक्कर चालरियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार।।
चक्कर चालरियो ढा़लिया में,
प्रजापत ब्रह्मा जी दरबार,
ब्रह्मा जी दरबार विधाता,
ब्रह्मा जी दरबार।।
गायक – पंडित रतनलाल प्रजापति।
सहयोगी – श्रीप्रजापति मण्डल चौगांवडी़।