चल उड़ जा रे पंछी,
की अब ये देश हुआ बेगाना।।
खतम हुए दिन उस डाली के,
जिस पर तेरा बसेरा था,
आज यहाँ और कल हो वहाँ,
ये जोगी वाला फेरा था,
ये तेरी जागीर नहीं थी,
चार घड़ी का डेरा था,
सदा रहा है इस दुनिया में,
किसका आबोदाना रे,
चल उड जा रे पँछी,
की अब ये देश हुआ बेगाना।।
तूने तिनका तिनका चुन कर,
नगरी एक बसाई,
बारिश में तेरी भीगी पाँखे,
धूप में गरमी खाई,
गम ना कर जो तेरी मेहनत,
तेरे काम ना आई,
अच्छा है कुछ ले जाने से,
देकर ही कुछ जाना,
चल उड जा रे पँछी,
की अब ये देश हुआ बेगाना।।
भूल जा अब वो मस्त हवा वो,
उड़ना डाली डाली,
जग की आँख का कांटा बन गई,
चाल तेरी मतवाली,
कौन भला उस बाग को पूछे,
ना हो जिसका माली,
तेरी किस्मत में लिखा है,
जीते जी मर जाना,
चल उड जा रे पँछी,
की अब ये देश हुआ बेगाना।।
रोते है वो पंख पखेरू,
साथ तेरे जो खेले,
जिनके साथ लगाये तूने,
अरमानों के मेले,
भीगी आँखों से ही उनकी,
आज दुआयें ले ले,
किसको पता अब इस नगरी में,
कब हो तेरा आना,
चल उड जा रे पँछी,
की अब ये देश हुआ बेगाना।।
चल उड़ जा रे पंछी,
की अब ये देश हुआ बेगाना।।
गायक – रमेश जी दाधीच।