चालो मना सत्संग करा,
दोहा – पाप कटे मन डटे,
सत्संग गंगा नहाय,
बिण्ड भया गुरू देव का,
दसो दोस मिट जाय।
दसों दोष मिट जाए,
यात्रा होवे पूरी,
भव फेरा मिटे,
मिटे चोरासी फेरी।
जन्म मरण का रोग,
मिटे चले न जम का जोर,
परमानंद यू खेत है,
सत्संग करता रो नत रोज।
चालो मना सत्संग करा,
कटे कर्मा की जाल,
चालों मना सत्संग करा।।
सत्संग का महत्व सुनो,
मिले पुरबला पुण्य,
मुक्ति हो जावे इण जीव री,
जा मिले चेतन संग,
चालों मना सत्संग करा।।
लोहा कर्म का पीत है,
पलटे पारस के सग,
मिलते ही कंचन भया,
पुरण हो गया अंग,
चालों मना सत्संग करा।।
मलियागिरी की संगत से,
सब तरु मलिया होए,
सुगंधी प्रकट भई,
कंचन हुआ सब सोय,
चालों मना सत्संग करा।।
अपने संग ब्रग लटक रहे,
सुणावे शब्द गुनजार,
कर पंखा भंवरो गयो,
उडियो भंवरा की लार,
चालों मना सत्संग करा।।
हरिजन हरि का रूप है,
जग में लिया अवतार,
अदब जिवो के कारणे,
संत लिया अवतार,
चालों मना सत्संग करा।।
सत्पुरुष की शरण से,
जिव होवे निराधार,
कर्म कटे दुरमति घटे,
होवे शब्दा से पार,
चालों मना सत्संग करा।।
गुरु सुखराम परमानंद है,
चेतन ब्रम अपार,
अचल राम सोई रूप है,
मिट गया द्वेश विकार,
चालों मना सत्संग करा।।
चलो मना सत्संग करा,
कटे कर्मा की जाल,
चालों मना सत्संग करा।।
Gayika – Sukhiya Bai Ji
प्रेषक – मदन मेवाड़ी।
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