चार दिनों की है,
तेरी जवानी,
आये ना लौट के,
बिते जिंदगानी,
हरी का ऐ मनवा,
भजन थोड़ा कर ले,
जतन कर ले,
भजन थोड़ा कर ले।।
तर्ज – अठ्ठरह बरस की तू।
तेरी ढलती जवानी की,
यही पहचान है,
वही सारे जग का स्वामी,
वही तेरा भगवान है,
तेरा भगवान हैं,
बांधे फिर क्यों पाप की गठरीया,
भजन थोड़ा कर ले,
जतन कर ले,
भजन थोड़ा कर ले।।
नहीं जग में कुछ तेरा,
ना ही कुछ मेरा है,
यह जग जोगी वाला,
ऐ जोगी वाला फेरा है,
जाये कुछ न फिर तेरे सघरिया,
भजन थोड़ा कर ले,
जतन कर ले,
भजन थोड़ा कर ले।।
उसके गरिमा का जग में,
सदा ही गुणगान है,
धरती और आकाश गगन का,
गगन का वही तो प्रधान है,
वही तो प्रधान हैं,
खोल दिल की तू अपने कोठारिया,
भजन थोड़ा कर ले,
जतन कर ले,
भजन थोड़ा कर ले।।
चार दिनों की है,
तेरी जवानी,
आये ना लौट के,
बिते जिंदगानी,
हरी का ऐ मनवा,
भजन थोड़ा कर ले,
जतन कर ले,
भजन थोड़ा कर ले।।
Upload By – Ram ji Verma
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