करता हूँ एक विनती,
तुमसे ओ मेरे श्याम,
दरबार ये ना छूटे,
संकट हो या आराम।।
तर्ज – बचपन की मोहब्बत को।
जब क्रोध में आऊ तो,
तुम शीतलता देना,
जब हो जाऊ मै कठोर,
थोड़ी कोमलता देना,
ना आये अहम कभी,
प्रभु रखना थोडा ध्यान,
सेवा ये ना छूटे चाहे,
दुःख हो या आराम।।
जब पड़ जाऊ कमजोर,
प्रभु हाथ पकड़ लेना,
अँधियारा हो घनघोर,
बाहों में जकड लेना,
ना चाहू अधिक लेकिन,
दे पाऊ दीन को दान,
विश्वास ये ना टूटे,
चाहे दुःख हो या आराम।।
व्याकुल हो जाऊ तो,
तुम धीर बंधा देना,
सत पथ से भटक जाऊ,
तू राह दिखा देना,
मन में आये ना बैर,
हाथों से हो अच्छे काम,
रिश्ता ये ना टूटे,
चाहे दुःख हो या आराम।।
जब अन्तकाल आये,
थोड़ी दया दिखा देना,
‘गोविन्द’ कहे मोहन सी,
एक झलक दिखा देना,
क्षण भर के दरश पाके,
हो जायेगा कल्याण,
दरबार ये ना छूटें,
चाहे दुःख हो या आराम।।
करता हूँ एक विनती,
तुमसे ओ मेरे श्याम,
दरबार ये ना छूटे,
संकट हो या आराम।।
रचयिता / गायक – गोविन्द दमानी कोलकाता।
प्रेषक – शंकरलाल रामनारायण अग्रवाल।
गोंदिया 9823300524