दीन बंधू दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये,
दीनो के दयालु दाता,
मोपे दया कीजिये,
दीन बन्धु दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये।।
भाई नहीं बन्धु नाही,
कुटुंब कबीलों नाही,
ऐसो कोई मित्र नाही,
जासे कछु लीजिये,
दीन बन्धु दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये।।
खेती नहीं बाडी नाही,
बिणज व्यापार नहीं,
ऐसो कोई सेठ नहीं,
जासे कछु लीजिये,
दीन बन्धु दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये।।
सोने को सुवइयो नाही,
रुपे को रुप्यो नाही,
कोड़ी में तो पास नाही,
कहो केसे कीजिये,
दीन बन्धु दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये।।
कहता मलुकदास,
छोड़ दे परायी आस,
सांचो तेरो एक नाम,
और किसका लीजिये,
दीन बन्धु दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये।।
दीन बंधू दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये,
दीनो के दयालु दाता,
मोपे दया कीजिये,
दीन बन्धु दीनानाथ,
मोरी सुध लीजिये।।
गायक – नवरत्न गिरी जी महाराज।
प्रेषक – हिमालय जोरीवाल।