देश उठेगा अपने पैरो,
निज गौरव के भान से,
स्नेह भरा विश्वास जगाकर,
जिए सुख सम्मान से।।
परावलंबी देश जगत में,
कभी ना यश पा सकता है,
मृगतृष्णा में मत भटको,
छिना सबकुछ जा सकता है,
मायावी संसार चक्र में,
कदम बढाओ ध्यान से,
अपने साधन नही बढेंगे,
औरों के गुणगान से।
देश उठेगा अपने पैरों,
निज गौरव के भान से,
स्नेह भरा विश्वास जगाकर,
जिए सुख सम्मान से।।
इसी देश में आदिकाल से,
अन्न रत्न भंडार रहा,
सारे जग को दृष्टि देता,
परम ग्यान आगार रहा,
आलोकित अपने वैभव से,
अपने ही विज्ञान से,
विविध विधाये फैली ध्रुव पर,
अपने हिन्दुस्तान से।
देश उठेगा अपने पैरों,
निज गौरव के भान से,
स्नेह भरा विश्वास जगाकर,
जिए सुख सम्मान से।।
अथक किया था श्रम अन्न गिन,
जीवन अर्पित निर्माण ने,
मर्यादित उपभोग हमारा,
पवित्रता हर प्राण मे,
परिपूरत परिपूर्ण सृष्टि,
चलती इस विधान से,
अपनी नव रचनाएँ होगी,
अपनी ही पहचान से।
देश उठेगा अपने पैरों,
निज गौरव के भान से,
स्नेह भरा विश्वास जगाकर,
जिए सुख सम्मान से।।
आज देश की प्रज्ञा भटकी,
अपनों से हम टूट रहे,
क्षुद्र भावना स्वार्थ जगा है,
श्रेष्ठ तत्व सब छूट रहे,
धारा स्व-की पुष्ट करेंगे,
समरस अमृत पान से,
कर संकल्प गरज कर बोले,
भारत स्वाभिमान से।
देश उठेगा अपने पैरों,
निज गौरव के भान से,
स्नेह भरा विश्वास जगाकर,
जिए सुख सम्मान से।।
देश उठेगा अपने पैरो,
निज गौरव के भान से,
स्नेह भरा विश्वास जगाकर,
जिए सुख सम्मान से।।
गायक – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
9640557818
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