धर्म पर मर जाना,
कोई बड़ी बात नहीं,
कोई बड़ी बात नहीं,
धर्म पर मर जाणा,
कोई बड़ी बात नहीं।।
धर्म पर डता हरिचन्द्र दानी,
काशी में बेच लड़का राणी,
फिर वो भरिया कलवा घर पानी,
बीके तो बिक जाना,
कोई बड़ी बात नहीं,
धर्म पर मर जाणा,
कोई बड़ी बात नहीं।।
धर्म पर डटा मोरध्वज दानी,
सुत के सर धर दीनी आरी,
संग में लेली अपनी नारी,
कटे तो कट जाना,
कोई बड़ी बात नहीं,
धर्म पर मर जाणा,
कोई बड़ी बात नहीं।।
धर्म पर डटा प्रहलाद प्यारा,
पिता से वेर बांधा न्यारा,
जलते खंभ पे हाथ रे डारा,
जले तो जल जाना,
कोई बड़ी बात नहीं,
धर्म पर मर जाणा,
कोई बड़ी बात नहीं।।
ये दास कबीर की वाणी,
वाणी तो विरला जानी,
धर्म पर मिट जाना,
कोई बड़ी बात नहीं,
धर्म पर मर जाणा,
कोई बड़ी बात नहीं।।
धर्म पर मर जाना,
कोई बड़ी बात नहीं,
कोई बड़ी बात नहीं,
धर्म पर मर जाणा,
कोई बड़ी बात नहीं।।
प्रेषक – जितेंद्र जी।
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