चार पहिया रो रथडो बनायो,
रथड़ा रा पहिया निकल जासी,
धीरे धीरे हाँको थारा रथड़ा ने,
गोकुल रा वासी रे मथुरा रा वासी,
धीरे धीरे हाको थारा रथड़ा ने।।
माथा री चुनड़ उड़ उड़ जावे,
गजरा रो फूल बिखर जासी,
धीरे धीरे हाको थारा रथड़ा ने।।
माथा री रकड़ी खुल खुल जावे,
नथड़ी रा नगीना निकल जासी,
धीरे धीरे हाको थारा रथड़ा ने।।
काना रा कुंडल खुल खुल जावे,
पगलिया रा झांझर मारा खुल जासी,
धीरे धीरे हाको थारा रथड़ा ने।।
राधारुक्मन जी केणो मारो मानो,
अरे मायरा री टेम निकल जासी,
धीरे धीरे हाको थारा रथड़ा ने।।
चार पहिया रो रथडो बनायो,
रथड़ा रा पहिया निकल जासी,
धीरे धीरे हाँको थारा रथड़ा ने,
गोकुल रा वासी रे मथुरा रा वासी,
धीरे धीरे हाको थारा रथड़ा ने।।
स्वर – लेहरुदास वैष्णव।
प्रेषक – रोशन कुमावत।
भेरुखेड़ा, दौलतपुरा।
8770943301