दूल्हा बण्या रे निर्वाण,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण,
निर्गुण के घर भही रे सगाई,
ब्याही सतवंती नार,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण।।
चार खम्ब को मण्डप बणायो,
उपर बांधी बंधन वार,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण।।
मौर बँधायो थारी बाई ने बँधायो,
मोतीला झलके द्वार,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण।।
चौरी में बैठे चौरासी छुड़ाई,
दायजो बैकुंठ माह,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण।।
कहें जण दल्लू सुणो भाई साधो,
संतो ने गायो मंगलाचार,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण।।
दूल्हा बण्या रे निर्वाण,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण,
निर्गुण के घर भही रे सगाई,
ब्याही सतवंती नार,
सिंगाजी बाबा,
दुल्लव बणिया रे निर्वाण।।
प्रेषक – घनश्याम बागवान सिद्दीकगंज।
7879338198