गहरी नर्मदा न गेहरो पानी,
ओ गहरी नर्मदा ने गेहरो पानी,
देखी न जीव घबराये हो,
मैय्या पार लगाऊजो।।
काम क्रोध काच मच बसत है,
ए लोभ को मगर देखाय हो,
मैय्या पार लगाऊजो,
गहरी नर्मदा ने गेहरो पानी,
देखी न जीव घबराये हो,
मैय्या पार लगाऊजो।।
सत की नाव केवटीया सतगुरु,
सुमिरण नाम आधार हो,
मैय्या पार लगाऊजो,
गहरी नर्मदा ने गेहरो पानी,
देखी न जीव घबराये हो,
मैय्या पार लगाऊजो।।
धर्मी धर्मी पार उतरिया,
पापी डूबियाँ मजधार हो,
मैय्या पार लगाऊजो,
गहरी नर्मदा ने गेहरो पानी,
देखी न जीव घबराये हो,
मैय्या पार लगाऊजो।।
गहरी नर्मदा न गेहरो पानी,
ओ गहरी नर्मदा ने गेहरो पानी,
देखी न जीव घबराये हो,
मैय्या पार लगाऊजो।।
गायक – अश्विन यदुवंशी जी।