गिनगिन कर तुझे स्वाँस मिली है,
बृथा इन्हे क्यो खोए,
करले भजन मन मेरे,
दिन रह गए थोड़े।।
तर्ज – लिखने वाले ने लिख डाले।
जीवन है माटी का ढैला,
चार दिनो का है ये मैला,
जग मे आया था तू अकेला,
जाएगा भी बन्दे अकेला,
पीले तू गुरू नाम का प्याला,
पीले तू गुरु नाम का प्याला,
खाए न यम के कोड़े,
करले भजन मन मेरे,
दिन रह गए थोड़े।।
नाम गुरु का भजते जाना,
नाम प्रभू का न विसराना,
गुरू चरणो मे मन को लगाना,
चाहे जो तू मोक्ष को पाना,
गुरू कृपा से बँदे तेरा,
मोक्ष न सँग तेरा छोड़े,
करले भजन मन मेरे,
दिन रह गए थोड़े।।
बात बड़ी है नाम को पाना,
बिरलो ने इस राज को जाना,
निगुरा जग मे है भटकाना,
सगुरो ने पाया हैखजाना,
जीवन तो सब ही पाते है,
जी्वन तो सब ही पाते है,
नर तन पाते है थोड़े,
करले भजन मन मेरे,
दिन रह गए थोड़े।।
गिनगिन कर तुझे स्वाँस मिली है,
बृथा इन्हे क्यो खोए,
करले भजन मन मेरे,
दिन रह गए थोड़े।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
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