गोविंद थे छो दया निधान,
झोली भर दो जी भगवान,
राखो घर आया को मान,
मैं सुनाऊं विनती।।
आप बिराजो निज मंदिर में,
सामे कंचन मेहल,
राधा जी ने लेर बाग में,
रोज करो थे सेर,
मंडफिया नगरी आलीशान,
मंडफिया नगरी आलीशान,
जीमे बैठा जी भगवान,
राखो घर आया को मान,
मैं सुनाऊं विनती।।
बचपन बीत जवानी बीती,
फिर भी गणा दुख जेलया,
आप जैसा के पाले पड़कर,
फिर भी पापड़ बेलया,
मैं तो टाबर छू नादान,
मैं तो टाबर छू नादान,
अर्जी सुण ज्यो जी भगवान,
राखो घर आया को मान,
मैं सुनाऊं विनती।।
बड़ा लोग या साची केथा,
दीपक तले अंधेरा,
घर का पूत कुंवारा डोले,
पड़ोस्या के फेरा,
गोपाल थे छो अकलवान,
गोपाल थे छो अकलवान,
अर्जी सुण ज्यो जी भगवान,
राखो घर आया को मान,
मैं सुनाऊं विनती।।
मैं गरजी अर्जी कर हारयो,
आप मूंद लिया कान,
मरता दम तक कहतो रहस्यों,
बण्या रहो यजमान,
गोपाल थे हो अकलवान,
गोपाल थे हो अकलवान,
मैं तो बालक हूँ नादान,
राखो घर आया को मान,
मैं सुनाऊं विनती।।
गोविंद थे छो दया निधान,
झोली भर दो जी भगवान,
राखो घर आया को मान,
मैं सुनाऊं विनती।।
Singer – Prem Singh Ji
Upload – Vinu Sonagar
7023805071