गुरु ब्रह्मा ज्ञानी है,
तुम सुनो संता,
बड़े विद्वानी है,
तुम सुनो संता।।
ज्ञान गुरु का गहरा,
लेवे होवे तो कोई जिज्ञासु,
जन्म मरण मिटावे,
कोई चाले गुरु की आज्ञा स्यूं,
भव सिंधु पार करे,
ये मन मानी है,
तुम सुनो संता।।
मन का धन है झूठा,
पल में राजा और क्षण में भिखारी,
कभी सभी को मारे,
कभी बन बैठे सबका पुजारी,
बंदर ज्यूं मन चंचल है,
बड़ा अज्ञानी है,
तुम सुनो संता।।
मैं सदा हूं चेतन,
होवे मिटे सो तिमर अज्ञाना,
मैं सभी के अंदर,
वोही जाने जो मेरा दिवाना,
ये जग सारा कल्पित है,
यह हम जानी है,
तुम सुनो संता।।
गुरु देवनाथ दयालु,
हमें अपना स्वरूप लखाया,
सहीराम यह काम तुम्हारा,
सारी दुनिया को सत्संग सुनाना,
जग सारा ज्ञान सुने,
बड़ी मेहरबानी है,
तुम सुनो संता।।
गुरु ब्रह्मा ज्ञानी है,
तुम सुनो संता,
बड़े विद्वानी है,
तुम सुनो संता।।
गायक – भक्त सहीराम जी धन्नासर वाले।
प्रेषक – नन्दू सोलंकी श्रीविजयनगर।
9828281232