हाजरी सरकार थे,
म्हारी मान ल्यो,
म्हारे नाम को भी,
इक खातो घाल लयो।।
म्हे तो थारे चरना माही,
भरवा आया हाजरी म्हारी,
धोक लगास्या भजन सुनास्या,
रोज ही आस्या शरण तिहारी,
भूलूंगा नहीं म्हे थाने जान लयो,
म्हारे नाम को भी,
इक खातो घाल लयो।।
सुनलयो बाबा बाता महारी,
भरणी पड़ेगी हाजरी माहरी,
जो नहीं भरस्यो हाजरी पूरी,
किस विध मिल्सी तलपट थारी,
मांडा है जी मेह या थे भी मांडल्यो,
म्हारे नाम को भी,
इक खातो घाल लयो।।
जब तक जिस्या हरदम आश्या,
हाजरी माहारी रोज मंदास्या,
दास रवि यू बोले बाबा,
सेवामे ही सुख महे पास्या,
आपनो हिसाब थे सारो राखियो,
म्हारे नाम को भी,
इक खातो घाल लयो।।
हाजरी सरकार थे,
म्हारी मान ल्यो,
म्हारे नाम को भी,
इक खातो घाल लयो।।
लेखक – श्री सूरज शर्मा (रवि)
प्रेषक – शिव कुमार सरावगी,
पटना बिहार, +918252729719
Jai shree shyam