हार गया इस जग से बाबा,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे,
थोडी सी तु किरपा कर दे,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे।।
तर्ज – मिलो ना तुम तो।
ऐसी बनादे बिगडी,
धुल जाये मन के सारे पाप रे,
आऊ जब तेरे द्वारे,
मन मे जगे विश्वास रे,
थोडी सी तु किरपा कर दे,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे।।
कोई ना संगी साथी,
मतलब का ये संसार रे,
जिसको भी अपना समझा,
करता वही व्यापार रे,
किसको अपना मान लु बाबा,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे।।
किसको सुनाऊ बाबा,
अपने ये दिल का मैं हाल रे,
कोई नही है अपना,
मोहन तु आके संभाल रे,
तेरे बिन ना मेरा गुजारा,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे।।
श्याम सलोना मेरा,
खाटू का सरताज रे,
बिगडी बनाने आजा,
हारे का तु ही महाराज रे,
‘अजब बैसला’ हार के बाबा,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे।।
हार गया इस जग से बाबा,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे,
थोडी सी तु किरपा कर दे,
आया तेरे द्वार,
नजर इक महर की कर दे।।
लेखक / प्रेषक – अजबसिंह बैसला।
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