हद होती है श्याम,
अब तो आजमाने की,
जान ही लोगे क्या,
बाबा तेरे दीवाने की,
हद होती हैं श्याम,
अब तो आजमाने की।।
इक तो पहले ही,
जमाने का सताया हूं मैं,
उस पर गम तेरी,
जुदाई का दे दिया तूने,
क्या खता है मेरी,
मुझको बताओ बाबा,
क्यों मेरे प्यार का,
ऐसा सिला दिया तूने,
हद होती हैं श्याम,
अब तो आजमाने की।।
मैं नहीं कहता मुझे,
चांद सितारे दे दे,
ना ही कहता मुझे,
गुलशन की बहारे दे दे,
मैं तो मांगू वही जो,
चाहे हारने वाला,
मेरा तो साथ तू,
हारे के सहारे दे दे,
हद होती हैं श्याम,
अब तो आजमाने की।।
जीतने वालों के कितने भी,
इम्तिहान ले ले,
हारने वालों के,
दिल से तू श्याम क्यों खेलें,
‘सोनू’ बतला भी दे,
हम जैसे बेसहारों की,
डूबती कश्तियां,
तूफान को कैसे झेले,
हद होती हैं श्याम,
अब तो आजमाने की।।
हद होती है श्याम,
अब तो आजमाने की,
जान ही लोगे क्या,
बाबा तेरे दीवाने की,
हद होती हैं श्याम,
अब तो आजमाने की।।
स्वर – राजू मेहरा जी।
प्रेषक – ऋषि कुमार विजयवर्गीय।
7000073009
https://youtu.be/mcq6KskSPCo