हजारो जन्मो को खोया,
मगर कुछ भी न पाया है,
मगर कुछ भी न पाया है,
अगर कुछ पाया है जग से,
तो बस धोखा ही खाया है,
तो बस धोखा ही खाया है।।
तर्ज – बहारो फूल बरसाओ।
जरा सोचो अरे प्राणी,
यहाँ हम किस लिए आए,
यही मौका है तरने का,
कही ये बीत न जाए,
गया अवसर नही आता,
ये सँतो ने बताया है,
हजारो जन्मों को खोया,
मगर कुछ भी न पाया है,
मगर कुछ भी न पाया है।।
बड़ी मुश्किल तुझे होगी,
तेरे जब प्राण निकलेगे,
तेरे रिश्ते तेरे नाते,
नही कुछ काम आएगे,
हरि ही काम आएगा,
जिसे तू ने भुलाया है,
हजारो जन्मों को खोया,
मगर कुछ भी न पाया है,
मगर कुछ भी न पाया है।।
अनेको बार सँतो ने,
तुझे आकर जगाया है,
नही जागा है तू फिर भी,
समय अपना गँवाया है,
सफल करले अरे मनवा,
ये मानुष तन जो पाया है,
हजारो जन्मों को खोया,
मगर कुछ भी न पाया है,
मगर कुछ भी न पाया है।।
हजारो जन्मो को खोया,
मगर कुछ भी न पाया है,
मगर कुछ भी न पाया है,
अगर कुछ पाया है जग से,
तो बस धोखा ही खाया है,
तो बस धोखा ही खाया है।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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