हलकारा खड़ा शीर काल का,
क्यों नींद भरम की सोवे,
हलकारा खड्या सरकार का,
क्यों नींद नचिता सोवे।।
प्रभु जी नै भूल मत,
जिसने रची तेरी काया,
पांच तत्व जोड़ कर,
शरीर तेरा बनवाया,
नव दस मास गरभ के मांही,
दुख बंदा भोत पाया,
भगती को कबूल प्यारे,
उदर सेती बाहर आया,
माया मांय रच्यो आय,
प्रभुजी नै गयो भूल,
भगती के बिना बन्दे,
सिर में पड़ेगी धूळ,
कछु न कामयो प्यारे,
ब्याज में गमायो मूल,
दिन आया निकट करार का,
कागज नै कठै लखोवै,
कागज़ नै कठै लखोवै,
हलकारा खड़ा शीर काल का,
क्यों नींद भरम की सोवे।।
डाली सेती पत्ता टूटा,
कितका मारया कित जाय,
धन और जोबन मांय,
काहे रह्यो गरभाय,
ओस का सा मोती प्यारे,
हवा सेती ढळ ज्याय,
सावण का सा बादळा,
पल में बिलाय मान,
पाणी में बुलबुला,
उठें उतना तेरा उनमान,
थोड़े से जीणें की खातिर,
तज दे झुठा अभिमान,
नर तज दे वचन अहंकार का,
क्यों बीज बदी का बोवै,
क्यों बीज बदी का बोवै,
हलकारा खड़ा शीर काल का,
क्यों नींद भरम की सोवे।।
टूटी सी कुटी के बीच,
सूत्यो पड्यो कंगाल,
रैन बीच सपना देखा,
भोत देख्यो धन माल,
हाथी घोड़ा बंध्या देख्या,
पल माहीं होग्यो निहाल,
सपने माँहीं राजा बन बैठ्यो,
उतने माहीं खुलगी आँख,
आँख खोल देखण लाग्यो,
चूल्हे में ना पाई राख,
साँची साँची कहना प्यारे,
झुठी मत करना बात,
कहाँ गया मेरा पिलंग निवार का,
में काहे पर सेज संजोवै,
काहे पर सेज संजोवै,
हलकारा खड़ा शीर काल का,
क्यों नींद भरम की सोवे।।
काठ के बिछौने बंदा,
एक दिन सोवेगा,
धरमराज लेखो लेसी,
क्या जवाब देवेगा,
दया धरम मन में राखो,
वही न्याय कैवेगा,
सुखीराम ग्यानी कहता,
प्रभु जी की यही मौज,
इक्कीस हजार छह सौ साँस,
आते हैं नित रोज,
इतना हारे से प्यारे,
कैसे जीते जम खोज,
कहना मान ले शिव लाल का,
क्यों बिरथा जनम नै खोवै,
क्यों बिरथा जनम नै खोवै,
हलकारा खड़ा शीर काल का,
क्यों नींद भरम की सोवे।।
हलकारा खड़ा शीर काल का,
क्यों नींद भरम की सोवे,
हलकारा खड्या सरकार का,
क्यों नींद नचिता सोवे।।
गायक – राजेन्द्र राव।
प्रेषक – सुभाष सारस्वा काकड़ा।
9024909170