हमें तुम बता दो,
कहाँ धाम तेरा,
निशदिन तेरे द्वार आते रहेंगे,
अरमान दिल में यही है हमारे,
सदा दीद तेरा ही पाते रहेंगे।।
तर्ज – मेरा प्यार वो है।
बहुर्त खेल देखे अज़ब ज़िन्दगी के,
जिसे जितना चाहा उसी ने रुलाया,
जिसपे किया था बहुत ही भरोसा,
उसी ने हमारे दिल को दुखाया,
नहीं है भरोसा किसी का जहाँ में,
लगन बस तुम्हीं से लगाते रहेंगे।।
दर-दर की ठोकर बहुत खा चुका हूँ,
चरणों में अपने दे दो ठिकाना,
मेहरबानियाँ हो अगर तेरी मुझपे,
तो क्या कर सकेगा सारा ज़माना,
कभी तो मिलेगा दीदार तेरा,
ये विश्वास मन में जगाते रहेंगे।।
बड़ा भाग्यशाली वही नर जहाँ में,
चरणों से तेरे लगन जो लगाया,
नहीं कर सका जो भजन ज़िन्दगी में,
अनमोल जीवन बिरथा गँवाया,
“परशुराम”को अपना सेवक बना लो,
सदा गीत तेरा ही गाते रहेंगे।।
हमें तुम बता दो,
कहाँ धाम तेरा,
निशदिन तेरे द्वार आते रहेंगे,
अरमान दिल में यही है हमारे,
सदा दीद तेरा ही पाते रहेंगे।।
लेखक एवं प्रेषक – परशुराम उपाध्याय।
श्रीमानस-मण्डल, वाराणसी।
मो-9307386438