हरी भजलो हरी भजलो,
हरी भजने का मौका है,
अभी भजलो सभी भजलो,
अभी भजने का मौका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
जतन करके रटन करके,
जला लो ज्ञान की बाती,
अकड़ने का नहीं बन्दे,
रटन करने का खोका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
नहीं तन भोग भोगन को,
नहीं तन लोग देखन को,
है तन ये योग करने को,
है तन ये धोक देने को,
ना माना भोग भव सिन्धु,
ये तन तरने की नौका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
बना रहना सदा ज्ञानी,
सुनाकर संत की वाणी,
नहीं बनना कभी कामी,
नहीं बनना विषय गामी,
बुझे ना ज्ञान की ज्योति,
विषय वायु का झोका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
पकड़ कर हाथ जो तेरा,
कहे ये बाप है मेरा,
अभी सब साथ है तेरे,
आगे होने को धोका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
मेरे नाते मेरे रिश्ते,
मेरे साथी घनेरे है,
नहीं नाते नहीं रिश्ते,
सभी साथी लुटेरे है,
करे ये लूट के नंगा,
मरे का माथा ठोका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
हरी भजलों हरी भजलो,
हरी भजने का मौका है,
अभी भजलो सभी भजलो,
अभी भजने का मौका है,
हरी भजलों हरी भजलों,
हरी भजने का मौका है।।
स्वर – संत श्री कमल किशोर जी नागर।