हरि हर एक है दोनों,
ना ये कम है ना वो कम है।।
तर्ज – सखी री बांके बिहारी से।
ये रहते है हिमालय में,
वो रहते क्षीरसागर में,
ससुर घर दोनों रहते है,
ना ये कम है ना वो कम है।।
इन्होने सिंधु को डांटा,
उन्होंने दक्ष सर काटा,
ससुर अपमान करने में,
ना ये कम है ना वो कम है।।
ये पीते प्रेम का प्याला,
वह पीते भांग का प्याला,
नशे में दोनों रहते है,
ना ये कम है ना वो कम है।।
रमा की बात ये माने,
उमा की बात वो माने,
पिया का मान करने में,
ना ये कम है ना वो कम है।।
हरि हर एक है दोनों,
ना ये कम है ना वो कम है।।
गायक – पं. श्री चन्द्रभूषण जी पाठक।
प्रेषक – दुर्गा प्रसाद पटेल।