हे अम्बे माँ भवानी,
दर पे तुम्हारे आये,
तेरे सिवा हे मईया,
दुखड़ा किसे सुनायें,
जय जय जय जय अम्बे माँ,
जय जय जय जय अम्बे माँ।।
तर्ज – ओ नन्हें से फ़रिश्ते।
है क्या कसूर मेरा,
तुमने मुझे बिसारा,
अच्छा हूँ या बुरा हूँ,
बालक हूँ माँ तुम्हारा,
दर छोड़कर तुम्हारा,
कहीं और हम ना जायें।।
है आसरा तुम्हारा,
विश्वास है हमारा,
श्रद्धा और भावना से,
जिसने तुम्हें पुकारा,
सुनकर पुकार तूने,
संकट से है बचाये।।
ना जाने ज़िन्दगी की,
कब डोर टूट जाये,
चरणों से तेरे लौ मेरा,
हरगिज़ न छूट पाये,
रग-रग में तेरी भक्ति,
मन में मेरे समाये।।
जीवन की डोर मेरी,
तेरे है अब हवाले,
फिर कौन ‘परशुराम’ को,
तेरे सिवा संभाले,
किस पे करूँ भरोसा,
दुनिया ने है सताये।।
हे अम्बे माँ भवानी,
दर पे तुम्हारे आये,
तेरे सिवा हे मईया,
दुखड़ा किसे सुनायें,
जय जय जय जय अम्बे माँ,
जय जय जय जय अम्बे माँ।।
लेखक एवं प्रेषक – परशुराम उपाध्याय।
श्रीमानस मण्डल, वाराणसी।
9307386438