इतना तो दो कन्हैया,
हक़ कम से कम,
कह सके ज़माने को,
तुम्हारे है हम,
इतना तो दो कन्हैंया,
हक़ कम से कम।।
तर्ज – बहुत प्यार करते है।
ये माना की मीरा सा,
ना प्रेम अटल है,
ना अर्जुन विदुर सा,
भरोसा प्रबल है,
ना मित्र सुदामा के,
ना मित्र सुदामा के,
जैसे है करम,
इतना तो दो कन्हैंया,
हक़ कम से कम।।
प्रह्लाद ध्रुव जैसी,
ना मासूम भक्ति,
नरसी ना सुर जैसी,
वो भाव में शक्ति,
ना रसखान जैसा,
ना रसखान जैसा,
हमारा जनम,
इतना तो दो कन्हैंया,
हक़ कम से कम।।
पड़ा वक़्त गज पे तो,
नंगे पाँव आये,
पुकारा जो द्रौपदी ने,
साड़ी बढ़ दिखाए,
निर्बल हूँ मैं बाबा,
निर्बल हूँ मैं श्याम,
तुझसे है दम,
इतना तो दो कन्हैंया,
हक़ कम से कम।।
ना पारस ना सोना,
ना हूँ कोई हीरा,
मैं गोपाली पागल,
ना संत कबीरा,
बने दास ‘सोनू’,
बने दास ‘सोनू’,
तेरा हर जनम,
इतना तो दो कन्हैंया,
हक़ कम से कम।।
इतना तो दो कन्हैया,
हक़ कम से कम,
कह सके ज़माने को,
तुम्हारे है हम,
इतना तो दो कन्हैंया,
हक़ कम से कम।।
स्वर – सोना जाधव।