जग उजियारा है ये,
दीनो का सहारा है ये,
कोई पाया ना इसका पार,
अपना सांवलिया सरकार,
हारे का सहारा है ये,
देव निराला है ये,
अहलवती का लाल,
अपना सांवलिया सरकार,
अपना सांवलिया सरकार।।
तर्ज – अपनी संतोषी माँ।
खाटू में दरबार लगा के,
करता है इंसाफ,
पापी से भी पापी को भी,
कर देता है माफ़,
द्वार खुला दरबार खुला है,
बैठा है सरकार,
इनके दर पर जाओ लेकिन,
कर लो मन को साफ़,
दुष्टो का संहार करे,
दीनो का उद्धार करे,
भक्तों से करता प्यार,
अपना सांवलिया सरकार,
अपना सांवलिया सरकार।।
निर्धन को धन निर्बल को बल,
देता है दातार,
भाग्य बदलते देर ना लगती,
सच्चा है दरबार,
लगन लगा के देख श्याम से,
कर देगा उद्धार,
नैया हो मझधार भले ही,
करता भव से पार,
दिल से जो लेता नाम,
रुक नहीं पता श्याम,
आए लीले असवार,
अपना सांवलिया सरकार,
अपना सांवलिया सरकार।।
चंदा सी शीतलता इनमे,
सौ सूर्यो सा तेज़,
मायापति है ऐसा बाबा,
ये जाने सब भेद,
श्याम की लीला श्याम ही जाने,
कहते चारो वेद,
एक तीर से सब पत्तो में,
करता ये ही सेन,
दिल से पुकार देख,
करता कमाल देख,
दौड़ा आएगा सरकार,
अपना सांवलिया सरकार,
अपना सांवलिया सरकार।।
तीन बाण तरकश में सोहे,
मोरछड़ी है हाथ,
झाड़ा ऐसा मोरछड़ी का,
बनती बिगड़ी बात,
हारे का साथी है बाबा,
है दीनो का नाथ,
‘निर्मल’ जीवन बाग डोर है,
सांवरिया के हाथ,
यारो का है यार श्याम,
बड़ा दिलदार श्याम,
सेठ बड़ा दातार,
अपना सांवलिया सरकार,
अपना सांवलिया सरकार।।
जग उजियारा है ये,
दीनो का सहारा है ये,
कोई पाया ना इसका पार,
अपना सांवलिया सरकार,
हारे का सहारा है ये,
देव निराला है ये,
अहलवती का लाल,
अपना सांवलिया सरकार,
अपना सांवलिया सरकार।।
स्वर – संजय मित्तल जी।