जहाँ बाबा का दरबार,
बच्चो को मिलता प्यार,
माँ बाप का हो सत्कार,
वो घर कितना सुंदर हो,
वो घर कितना सुंदर हो।।
तर्ज – ना कजरे की धार।
जहाँ प्रेम के दरवाजे,
अभिमान की फर्श बिछाई,
श्रद्धा की खोली खिड़की,
आशा की किरण जगाई,
तेरी कृपा की जो छत हो,
तेरी कृपा की जो छत हो,
किस बात की दरकार।
जहां बाबा का दरबार,
बच्चो को मिलता प्यार,
माँ बाप का हो सत्कार,
वो घर कितना सुंदर हो,
वो घर कितना सुंदर हो।।
मैंने मेहनत और पसीने से,
एक एक ईंट लगाई,
एक सुंदर से कमरे में,
बाबा की जगह बनाई,
भक्ति का रंग रोगन,
भक्ति का रंग रोगन,
अब पूरा हुआ घरबार।
जहां बाबा का दरबार,
बच्चो को मिलता प्यार,
माँ बाप का हो सत्कार,
वो घर कितना सुंदर हो,
वो घर कितना सुंदर हो।।
मेरे घर के इस उपवन में,
भक्ति का पुष्प खिला दे,
मेरी स्वांसों की माला में,
तेरे प्रेम का मोती पिरोदे,
भक्तो संग “दूनीवाला”,
भक्तो संग “दूनीवाला”,
बाबा का करे गुणगान।
जहां बाबा का दरबार,
बच्चो को मिलता प्यार,
माँ बाप का हो सत्कार,
वो घर कितना सुंदर हो,
वो घर कितना सुंदर हो।।
जहाँ बाबा का दरबार,
बच्चो को मिलता प्यार,
माँ बाप का हो सत्कार,
वो घर कितना सुंदर हो,
वो घर कितना सुंदर हो।।
– गायक एवं प्रेषक –
गौत्तम शर्मा।
7737828030