जहाँ बाबोसा का बसेरा,
वहाँ सुखों का होता सवेरा,
इनकी शरण में आते ही,
मिट जाता गम का अंधेरा,
जो खोया है वो पायेगा,
जिन्दगी में तू द्वार तो आ,
जहाँ बैठा नाथ मेरा,
वो चुरूधाम।।
तर्ज – जब कोई बात बिगड़ जाये।
चमत्कार जो करते हरपल,
वो तांती भभूति जल,
श्रद्धा से जिसने भी,
लगाई मिलता फल,
ना कोई है ना कोई था,
‘दिलबर’ तेरे सिवा यहाँ,
करु नमन मैं बारम्बार,
वो चुरूधाम।।
जिस द्वार से मिलता बल,
वहाँ हर मुश्किल होती हल,
जहाँ होगा काम तेरा,
वो चुरूधाम।।
जहाँ बाबोसा का बसेरा,
वहाँ सुखों का होता सवेरा,
इनकी शरण में आते ही,
मिट जाता गम का अंधेरा,
जो खोया है वो पायेगा,
जिन्दगी में तू द्वार तो आ,
जहाँ बैठा नाथ मेरा,
वो चुरूधाम।।
लेखक / प्रेषक – दिलीप सिंह सिसोदिया दिलबर।
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