जिस घर के आंगन में,
तेरी ज्योत निराली है,
हर रोज वहां होली,
हर रात दिवाली है,
जिस घर के आंगन मे,
तेरी ज्योत निराली है।।
जिस घर मे ऐ मैया,
तेरा नाम चहकता है,
उस घर का हर कोना,
खुशियों से महकता है,
उस घर पे मेहर करती,
उस घर पे मेहर करती,
मेरी माँ मेहरवाली है,
जिस घर के आंगन मे,
तेरी ज्योत निराली है।।
दारिद्र भाग जाते,
दुख भागे डर कर के,
उस घर मे नही आते,
दुख कभी भूलकर के,
शेरो पे जहाँ रहती,
मेरी माँ शेरांवाली है,
जिस घर के आंगन मे,
तेरी ज्योत निराली है।।
कैसे भी अँधेरे हो,
ये ज्योत मिटाती है,
विश्वास जो करते है,
उन्हें राह दिखाती है,
पावन ज्योति माँ की,
जिसने भी जगाली है,
जिस घर के आंगन मे,
तेरी ज्योत निराली है।।
‘बेधड़क’ कहे ‘लख्खा’,
ममता के चुन मोती,
घर मंदिर हो जाये,
श्रद्धा से जाग ज्योति,
खुशियो से भरेगी माँ,
जो तेरी झोली खाली है,
जिस घर के आंगन मे,
तेरी ज्योत निराली है।।
जिस घर के आंगन में,
तेरी ज्योत निराली है,
हर रोज वहां होली,
हर रात दिवाली है,
जिस घर के आंगन मे,
तेरी ज्योत निराली है।।
गायक – लखबीर सिंह लक्खा,
भजन प्रेषक – शेखर चौधरी।