जो हारा सो पुकारा रे,
पुकारा रे कन्हैया,
खाटू वाले खाटू वाले,
खाटू वाले खाटू वाले,
जो हारा सो पुकारा रे।।
तर्ज – बना के क्यों बिगाड़ा रे।
हार गई थी जब द्रोपदी तो,
आपको टेर सुनाई थी,
बीच सभा में चीर बढ़ा के,
बहन की लाज बचाई थी,
तू रखवाला खेल निराला,
तुम्हारा रे कन्हैया,
खाटू वाले खाटू वाले,
खाटू वाले खाटू वाले,
जो हारा सो पुकारा रे।।
कितने युगो से अपने भगत के,
बिगड़े काम बनाते हो,
साग विदुर के और भिलनी के,
झूठे बेर भी खाते हो,
क्या ना किया है,
हर पल दिया है,
सहारा रे कन्हैया,
खाटू वाले खाटू वाले,
खाटू वाले खाटू वाले,
जो हारा सो पुकारा रे।।
मेरे बस में कुछ भी नही है,
आप ही कुछ तदबीर करो,
जान रहे हो सारी व्यथा तो,
अब गंभीर की पिर हरो,
दिल में बसा के,
आस लगा के,
निहारा रे कन्हैया,
खाटू वाले खाटू वाले,
खाटू वाले खाटू वाले,
जो हारा सो पुकारा रे।।
जो हारा सो पुकारा रे,
पुकारा रे कन्हैया,
खाटू वाले खाटू वाले,
खाटू वाले खाटू वाले,
जो हारा सो पुकारा रे।।
स्वर – संजय मित्तल जी।