जो श्याम पर फिदा हो,
उस तन को ढूंढते है,
घर श्याम का हो जिसमे,
उस मन को ढूंढते हैं।।
जो बीत जाए प्रीतम,
की याद में बिरह में,
जीवन भी ऐसे दे के,
जीवन को ढूंढते हैं,
जों श्याम पर फिदा हों,
उस तन को ढूंढते है,
घर श्याम का हो जिसमे,
उस मन को ढूंढते हैं।।
सुख शांति में सुरति में,
मति में कथा प्रकृति में,
प्राणो की प्राण गति में,
मोहन को ढूंढते हैं,
जों श्याम पर फिदा हों,
उस तन को ढूंढते है,
घर श्याम का हो जिसमे,
उस मन को ढूंढते हैं।।
बंधता है जिस में आकर,
वह ब्रम्ह मुक्त बंधन,
उस प्रेम के अनोखे,
बंधन को ढूंढ़ते है,
जों श्याम पर फिदा हों,
उस तन को ढूंढते है,
घर श्याम का हो जिसमे,
उस मन को ढूंढते हैं।।
आहों की जो घटा हो,
दामिनी हो दर्द दिल की,
रस ‘बिंदु’ बरसे जिससे,
उस धन को ढूंढते है,
जों श्याम पर फिदा हों,
उस तन को ढूंढते है,
घर श्याम का हो जिसमे,
उस मन को ढूंढते हैं।।
जो श्याम पर फिदा हो,
उस तन को ढूंढते है,
घर श्याम का हो जिसमे,
उस मन को ढूंढते हैं।।
स्वर – श्री मृदुल कृष्ण जी शास्त्री।