प्रेम की गंगा बहाते चलो,
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो,
राह में आये जो दीन दुखी,
सब को गले से लगाते चलो।।
कौन है ऊँचा, कौन है नीचा,
सब में वो ही समाया,
भेदभाव के झूठे भरम में,
ये मानव भरमाया,
धर्म ध्वजा फ़हराते चलो।।
सारे जग के कणकण में है,
दिव्य अमर एक आत्मा,
एक ब्रम्ह है, एक सत्य है,
एक ही है परमात्मा
प्राणों से प्राण मिलाते चलो।।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो,
राह में आये जो दीन दुखी,
सब को गले से लगाते चलो।।