कभी देखा ना किसी का नसीबा,
जो भी इस धरती पर मनुष्य के रूप में जन्म लेता है,
उसे मनुष्य के सभी कर्तव्य निभाने पड़ते हैं
और भगवान श्री कृष्ण ने भी ऐसा ही किया था,
लेकिन दुनिया वालों ने उन्हें भी नहीं बख्शा,
दुनिया की बातों से दुखी होकर भगवान श्री कृष्ण,
अपने भाग्य विधाता से क्या कहते हैं –
कभी देखा ना किसी का नसीबा,
कभी देखा नहीं ऐसा नसीबा,
ओ, जैसा लिखा विधाता ने मेरा,
क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
मैं क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
कभी देंखा ना किसी का नसीबा।।
तर्ज – सारे जग का है वो रखवाला।
बालसखा कुछ ऐसे थे,
ना गईया ना पैसे थे,
मन चंचल था बचपन का,
जिद माखन की कर बैठा,
धर्म यारी का मैंने निभाया – २,
चोर दुनिया ने मुझको बताया,
क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
मैं क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
कभी देंखा ना किसी का नसीबा।।
वे खुल्ला रोज नहाती थी,
शर्म जरा नहीं आती थी,
उनको सबक सिखाना था,
कपड़े मुझे छुपाना था,
कैसा दुनिया ने मुझको सताया – २,
देखो छलिया रे मुझको बताया,
क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
मैं क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
कभी देंखा ना किसी का नसीबा।।
कौरव भी मुझे प्यारे थे,
पांडव बड़े दुलारे थे,
लेकिन एक मजबूरी थी,
धर्म अधर्म की दूरी थी,
महाभारत को रोक नहीं पाया,
दोष सारा मेरे सर पे आया,
कुल नाशक ये मोहन कहलाया,
क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
मैं क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
कभी देंखा ना किसी का नसीबा।।
कभी देखा ना किसी का नसीबा,
कभी देखा नहीं ऐसा नसीबा,
ओ, जैसा लिखा विधाता ने मेरा,
क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
मैं क्या करूं..क्या करूं..क्या करूं,
कभी देंखा ना किसी का नसीबा।।
– गायिका एवं प्रेषक –
राजमणी आर्या
9897230967