कबीर अमृतवाणी लिरिक्स,
गुरु गोविंद दोऊ खड़े,
काके लागू पाय,
बलिहारी गुरु आपने,
गोविन्द दियो बताय।।
ऐसी वाणी बोलिए,
मन का आपा खोय,
औरन को शीतल करे,
आपहुं शीतल होय।।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ,
जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं,
फल लागे अति दूर।।
निंदक नियरे राखिए,
आँगन कुटी छवाय,
बिन पानी साबुन बिना,
निर्मल करे सुभाय।।
बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय,
जो मन देखा आपना,
मुझसे बुरा ना कोय।।
दुःख में सुमिरन सब करे,
सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुःख काहे होय।।
माटी कहे कुम्हार से,
तू क्या रोंदे मोहे,
एक दिन ऐसा आएगा,
मैं रोंदूगी तोहे।।
मेरा मुझ में कुछ नहीं,
जो कुछ है सो तेरा,
तेरा तुझको सौंपता,
क्या लागे है मेरा।।
काल करे सो आज कर,
आज करे सो अब,
पल में परलय होयगी,
बहुरी करेगा कब।।
जाति न पूछो साधु की,
पूछ लिजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का,
पड़ी रहन दो म्यान।।
नहाये धोये क्या हुआ,
जो मन मैल न जाए,
मीन सदा जल में रहे,
धोये बास न जाए।।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ,
पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का,
पढ़े सो पंडित होय।।
राम इतना दीजिये,
जामे कुटुंब समाये,
मैं भी भूखा ना रहूँ,
साधू ना भूखा जाए।।
माखी गुड़ में गड़ी रहे,
पंख रहे लिपटाए,
हाथ मले और सर धुने,
लालच बुरी बलाय।।
Singer – Debashis Das Gupta
Upload By – Harish Sharma
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