कल भी मन अकेला था,
दोहा – आदत बदल गई है,
वक्त काँटने की,
हिम्मत ही नहीं होती,
अब दर्द बांटने की।
शाम की उदासी में,
यादों का मेला है,
भीड़ तो बहुत है,
पर मन अकेला है।
कल भी मन अकेला था,
आज भी अकेला है,
जाने मेरी किस्मत ने,
कैसा खेल खेला है।।
ढूंढते हो तुम खुशबू,
कागजी गुलाबों में,
प्यार सिर्फ मिलता है,
आज कल किताबों में,
रिश्ते नाते झूठे है,
स्वार्थ का झमेला है,
जाने मेरी किस्मत ने,
कैसा खेल खेला है।।
जिंदगी के मंडप में,
हर खुशी कंवारी है,
किससे मांगने जाए,
हर कोई भिखारी है,
कहकहो की आंखों में,
आंसुओं का रेला है,
जाने मेरी किस्मत ने,
कैसा खेल खेला है।।
कल भी मन अकेंला था,
आज भी अकेंला है,
जाने मेरी किस्मत ने,
कैसा खेल खेला है।।
स्वर – देवी हेमलता शास्त्री जी।
प्रेषक – डॉ सजन सोलंकी।
9111337188