कलयुग का ये पहरा लागा,
काली राता रे,
यो वेग्यो एकाकार,
नाम की रेगी जाता रे।।
हिन्दू मुस्लिम होटल में एक,
प्याली पीवण लागा रे,
ऊँच नीच को काम नही है,
धर्म कर्म सब भागा रे,
ज्ञान ध्यान सब खूंटया टेरयो,
नागाई में आगा रे,
राव रंक सब एक बण्या है,
भाग भारत का जागया रे,
छोट मोट को अचर उचर नी,
वेगी साता रे,
यो वेग्यो एकाकार,
नाम की रेगी जाता रे।।
बहू सास को कयो न माने,
आँख काड चमकावे रे,
ससुराजी ने मोल्यो समजे,
धणिया ने धमकावे रै,
बेटो बाप के उपर देखो,
मनखी ज्यूं घुरावे रे,
नारी का केणा में भोली,
माता ने धमकावे रे,
चोरी कर सरजोरी करबो,
मारे लाता रे,
यो वेग्यो एकाकार,
नाम की रेगी जाता रे।।
दारू पीकर धक्का खाता,
रंडया के घर जावे रे,
दया दान में समजे नाही,
नरभक्षी कहलावे रे,
बेरहमी बण बकरा काटे,
जीव हत्याकर खावे रे,
मोटा मोटा बापा का ये,
बेटया नाम कडावे रे,
छिज ने भाजी हुई पेट की,
रेगी आँता रे,
यो वेग्यो एकाकार,
नाम की रेगी जाता रे।।
मुंह देखी या यारी रह गई,
मन में राखे आटी रे,
ये भैरव लेवे बंटवारो,
भाई भाई ने काटी रे,
चेला ने गेले चला वो,
चढगया ऊपट घाटी रे,
गुरु जी तो गेला में रेगया,
चेला देगया चांटी रे,
फीकी फीकी कोरी फोकट,
रह गई बातां रे,
यो वेग्यो एकाकार,
नाम की रेगी जाता रे।।
कलयुग का ये पहरा लागा,
काली राता रे,
यो वेग्यो एकाकार,
नाम की रेगी जाता रे।।
गायक – नारायण कुमावत।
9982300361
लेखक – पंडित भैरव शंकर जी महाराज।