कण कण में कृष्ण समाये है,
भक्तों ने हरि गुण गाए हैं।।
ओंकार में सभी समाया,
बिंदु में सिंधु लहराया,
हरी करुणा सिंधु कहाऐ है,
भक्तों ने हरी गुण गाए हैं,
कण कण में कृष्ण समाए है,
भक्तों ने हरि गुण गाए हैं।।
वीर दुशासन चीर खींचता,
द्रुपद सुता का बल नही चलता,
प्रभु साड़ी बनकर आए हैं,
भक्तों ने हरी गुण गाए हैं,
कण कण में कृष्ण समाए है,
भक्तों ने हरि गुण गाए हैं।।
प्रेम और विश्वास के बल पर,
दर्शन देते व्यापक ईश्वर,
मधुबन में रास रचाए हैं,
भक्तों ने हरी गुण गाए हैं,
कण कण में कृष्ण समाए है,
भक्तों ने हरि गुण गाए हैं।
गज ने पाया गिद्ध ने पाया,
सागर में पत्थर को तिराया,
फिर मानव क्यों घबराए हैं,
भक्तों ने हरी गुण गाए हैं,
कण कण में कृष्ण समाए है,
भक्तों ने हरि गुण गाए हैं।।
कण कण में कृष्ण समाये है,
भक्तों ने हरि गुण गाए हैं।।
स्वर – प्रेम नारायण जी गेहूंखेड़ी।
प्रेषक – Arjit Malav
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