सच कहता हूँ मैं कसम से,
सोने चाँदी ना धन से,
कर लो सेवा तन मन से,
मिलते है श्याम भजन से,
कन्हैया तो प्रेम का भूखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है,
कन्हैया तो प्रेम का भुखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है।।
तर्ज – ये बंधन तो।
दुनिया की दौलत से,
कान्हा खुश नही होते,
वरना ये पैसे वाले,
इसको खरीद ही लेते,
इसे अपने घर ले जाते,
जो चाहते सो करवाते,
कन्हैया तो प्रेम का भुखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है।।
नरसी कर्मा मीरा ने,
दौलत नही दिखाई,
इसीलिए तो उनको,
देते ये श्याम दिखाई,
सूखे तंदुल भी चबाए,
प्रभु साग विदुर घर खाए,
कन्हैया तो प्रेम का भुखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है।।
झूठा प्रेम किया तो,
चोट श्याम को लगती,
रूठ गए गर बाबा,
मिट जाए ये हस्ती,
‘संजू’ करले तू भक्ति,
लूटेगा हरपल मस्ती,
कन्हैया तो प्रेम का भुखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है।।
सच कहता हूँ मैं कसम से,
सोने चाँदी ना धन से,
कर लो सेवा तन मन से,
मिलते है श्याम भजन से,
कन्हैया तो प्रेम का भूखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है,
कन्हैया तो प्रेम का भुखा है,
जो प्रेमी है ये उसका है।।
स्वर – हरी शर्मा जी।