ज्ञानी हो या वो मूरख गँवार,
आए गुरु दर जो एक बार,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा।।
तर्ज – आने से उसके आए बहार।
मन करेगा सुमिरन,
गुरूवाणी को चित में जो लाए,
करके दया गुरुवर फिर,
नाम जपने की युक्ती बताए,
सँतो की वाणी है,
ऐसे महादानी है,
मेरे गुरूदेवा,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा।।
जो ध्यान करे सतगुरु का,
भव बँधन से सतगुरु छुड़ाए,
डूबे न उसकी नइया,
पार जिसको गुरु खुद कराए,
नाव वही पतवार वही,
वो ही भव का पानी है,
मेरे गुरूदेवा,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा।।
जो नाम निरँतर ध्यावे,
निश्चय ही चरण रज वो पावे,
गुरूदेव दया से प्राणी,
अपना सोया नसीबा जगाए,
जनम जनम के रोग मिटे,
महा कल्याणी है,
मेरे गुरूदेवा,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा।।
ज्ञानी हो या वो मूरख गँवार,
आए गुरु दर जो एक बार,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा,
करते मेहरबानी है,
मेरे गुरूदेवा।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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