खबर नहीं है पल की,
दोहा – मरना मरना सब कोई कहे,
मरना ना जाने कोई,
एक बार ऐसे मरो,
फिर से मरना ना होय।
लाख कमाले हीरे मोती,
तृष्णा तृप्त नहीं होती,
अंतिम उपदेश संतो का सुनले,
कफ़न में जेब नहीं होती।
खबर नहीं है पल की,
रे मनवा बात करे कल की,
तुझे खबर नही है पल की,
काहे बात करे तू कल की,
खबर नही है पल की,
रे मनवा बात करे तू कल की।।
राजा हो या रंक रानी,
सबकी ये कहानी है,
आया है सो जाएगा,
दुनिया आनी जानी है,
तू करले यतन पल की,
रे मनवा बात करे कल की,
खबर नही है पल की,
रे मनवा बात करे तू कल की।।
नादान तू क्यों आखिर,
गफलत में सोया है,
तुझे खबर नही है पल की,
काहे मत को खोया है,
अब मान ले गुरु जन की,
रे मनवा बात करे कल की,
खबर नही है पल की,
रे मनवा बात करे तू कल की।।
ये छल कपट की दुनिया,
इसमें तू लुभाया है,
लिए पाप की गठरी,
सारे जग में भटकता है,
तू करले जतन पल की,
रे मनवा बात करे कल की,
खबर नही है पल की,
रे मनवा बात करे तू कल की।।
खबर नहीं है पल की,
रे मनवा बात करे कल की,
तुझे खबर नही है पल की,
काहे बात करे तू कल की,
खबर नही है पल की,
रे मनवा बात करे तू कल की।।
स्वर / रचना – चंदू गुरूजी।