खाटू आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, श्याम का,
खाटु आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया।।
तर्ज – दिल दीवाना ना जाने कब।
पहले तो हम साल में,
एक दो बार मिल पाते थे,
यादों के सहारे ही,
अपना वक्त बिताते थे,
दिल में है क्या, ये पढ़ लेता,
जब चाहे बुला लेता,
रंग चढ़ गया, रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, श्याम का,
खाटु आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया।।
चिंता सौंप दी श्याम को,
हम चिंतन में रहते हैं,
हम दीवाने श्याम के,
सीना ठोक के कहते हैं,
जब से बना, ये हमसफर,
हम तो हुए है बेफिकर,
रंग चढ़ गया, रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, श्याम का,
खाटु आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया।।
सांवरिया के प्रेम में,
जब से हम तो पड़ गए,
जग के झूठे फरेब से,
हम तो ऊपर उठ गए,
‘मोहित’ कहे, हूँ खुशनसीब,
हम भी हुए इन के करीब,
रंग चढ़ गया, रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, श्याम का,
खाटु आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया।।
खाटू आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, रंग चढ़ गया,
रंग चढ़ गया, श्याम का,
खाटु आना जाना जब से बढ़ गया,
श्याम प्रेम का मुझ पे भी,
रंग चढ़ गया।।
स्वर – बिजेन्दर जी चौहान।