क्या बैकुंठ क्या स्वर्ग का करना,
मुझको जान से प्यारा,
खाटू धाम हमारा,
हो खाटु धाम हमारा,
इसके आगे फीका लगता,
है हर एक नज़ारा,
खाटु धाम हमारा,
खाटु धाम हमारा।।
तर्ज – धरती सुनहरी अम्बर नीला।
खाटू की धरती पावन,
जहाँ बाबा का है बसेरा,
मेरा तो स्वर्ग वही पे,
जहाँ श्याम धणी का डेरा,
इससे सुन्दर कुछ भी नहीं है,
इससे सुन्दर कुछ भी नहीं है,
देख लिया जग सारा,
खाटु धाम हमारा,
खाटु धाम हमारा।।
जिसने खाटू देखा है,
वो स्वर्ग ना जाना चाहे,
है धाम वो सबसे प्यारा,
जहाँ ये दरबार लगाए,
भक्तों की खातिर बाबा ने,
भक्तों की खातिर बाबा ने,
धरती पे स्वर्ग उतारा,
खाटु धाम हमारा,
खाटु धाम हमारा।।
मौका जो मिले तो इक बार,
तुम खाटू जाके आओ,
क्या मैंने झूठ कहा था,
आकर के मुझे बताओ,
कहे ‘पवन’ के जाना पड़ेगा,
मिलने इनसे दौबारा,
खाटु धाम हमारा,
खाटु धाम हमारा।।
क्या बैकुंठ क्या स्वर्ग का करना,
मुझको जान से प्यारा,
खाटू धाम हमारा,
हो खाटु धाम हमारा,
इसके आगे फीका लगता,
है हर एक नज़ारा,
खाटु धाम हमारा,
खाटु धाम हमारा।।
स्वर – राजू मेहरा जी।